1. सूर्य आदि पुरूष हैं। सृष्टि में व्याप्त वह तत्व जो कभी नष्ट नहीं होता। जिसे आत्मा कहते हैं।
2. सभी खगोलीय गणनाएं 499 ए.डी. के आधार पर की जाती हैं।
3. भारतीय खगोलीय गणनाऎं भू-केन्द्रिक हैं जबकि पाश्चात्य गणनाएं सूर्य केन्द्रिक हैं।
4. भारतीय मत से नक्षत्र मंडल में दूरियों की गणना मेषारम्भ (अश्विनी नक्षत्र) बिन्दु को स्थिर मानकर की जाती है। जबकि पाश्चात्य मत में मेषारम्भ बिन्दु को चलायमान मानते हैं। पाश्चात्य मत में बसन्त संपात के समय सूर्य जिस नक्षत्र पर हो वही मेषारम्भ बिन्दु होता है।
5. हमारी भारतीय गणनाओं में चित्रापक्षीय अयनांश मान्य है।
6. निरयन् और सायन में अयनांश मुख्य अंतर होता है। अर्थात सायन भोगांश-अयनांश= निरयन भोगांश ।
7. अयनांश लगभग 72 वष् में एक अंश तथा एक वर्ष में 50 विकला 3 सूक्ष्म कला चाप पीछे खिसकता है।
8. पृथ्वी के अक्ष और क्रान्तिवृत्त के मध्य 23 अंश का कोण होता है।
9. भारतीय मत में समय (दिन की) गणना सूर्योदय से सूर्योदय के आधार पर की जाती है जबकि पाश्चात्य मत में दिन गणना पृथ्वी के धूर्णन (अपनी अक्ष पर धूर्णन से) की जाती है।
10. भारतीय गणनाओं में स्थानीय समय का महत्व है और पाश्चात्य गणनाओं में मानक समय की महत्ता है।
11. भारतीय शास्त्रों में खगोल शास्त्र और ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है, एक शरीर है तो एक आत्मा है।
12. पृथ्वी गोल है, पृथ्वी से द्रष्ट, पृथ्वी के सापेक्ष आकाश भी गोल है।
13. पृथ्वी से द्रष्ट आकाश का दृश्य भाग ही निहारिका अर्थात् आकाश गंगा है।
14. पृथ्वी को भूमध्य रेखा दो भा
गों उत्तर व दक्षिण में विभाजित करती है। इस रेखा से बना वृत्त वृहत वृत कहलाता है।
15. विषवत् रेखा आकाश को पृथ्वी की ही भांति उत्तर व दक्षिण दो भागों में विभाजित करती है। आकाश में इस रेखा से बना काल्पनिक वृत्त विषवत् या ऩाडी वृत्त कहलाता है।
16. आकाशीय गोल में सूर्य जिस पथ पर गमन करते दिखाई देते हैं वह पथ क्रान्ति पथ या क्रान्ति वृत्त कहलाता है।
17. ऩाडी वृक्ष या वृहत्त् वृत्त से क्रान्ति वृत्त 23 अंश 27 कला का कोण बनाता है।
18. वास्तव में क्रान्ति वृत्त सूर्य के भ्रमण से नहीं अपितु सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी के भ्रमण से बनता है।
19. पृथ्वी अपनी अक्ष पर 23 दिन की 17 कला झुकी हुई है।
20. क्रान्ति वृत्त को मध्य मानकर 9 अंश उत्तर व 9 अंश दक्षिण तक विस्तृत भाग भचक्र कहलाता है। इसे ही नक्षत्र मण्डल कहते है जिसमें सूर्यादि ग्रह नक्षत्र भ्रमण करते है। यह 9 का मान ही उत्तर या दक्षिण शर कहलाते हैं।
21. सूर्यादि ग्रहों के भोगांश (राशि विशेष में स्थिति) मेष के प्रारम्भ बिन्दु से निश्चित होता है।
22. वसंत संपात अर्थात उत्तर गोल में प्रवेश वाले दिन (21 मार्च) तथा दक्षिण गोल में प्रवेश वाले दिन (23 सितम्बर) को सूर्य क्रान्ति शून्य होती है।
23. ग्रीष्म संपात या दक्षिणायन वाले दिन (21 जून) सूर्य की उत्तरा क्रान्ति अधिकतम होती है तथा उत्तरायण वाले दिन (22 दिसम्बर) सूर्य की दक्षिणा क्रान्ति अधिकतम होती है।
24. 21 मार्च और 23 सितम्बर को दिनमान व रात्रिमान समान होते हैं।
25. कोई भी आकाशीय पिण्ड पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर तब होता है जब वह याम्योत्तर वृत्त पर होता है।
26. भूमध्य रेखा से दोनो धु्रवों के एक साथ दर्शन होते हैं।
27. ग्रहों का कक्षा क्रम पृथ्वी केन्द्रिक व्यवस्था में उत्तरोत्तर क्रमश: पृथ्वी, सिद्घ, विद्याद्यर, घन बादल-चंद्र बुध- शुक्र-सूर्य-मंगल-गुरू-एवं शनि-यूरेनस -नेप्च्युन-प्लूटो।
28. कक्षा क्रम सूर्य केन्द्रिक व्यवस्था में क्रमश: सूर्य-बुध-शुक्र-पृथ्वी- चंद्र - मंगल-गुरू-शनि-यूरेनस-नेपच्यून-प्लूटो।
29. सूर्य का व्यास 8,65,000 मील है। यह पृथ्वी से लगभग 110 गुना अधिक बडा है।
30. सूर्य का आयतन पृथ्वी के आयतन से 13,00,000 गुणा अधिक है।
31. सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से 3,30,000 गुणा अधिक है।
32. सूर्य की पिण्डात्मक ऊर्जा हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तन से बनती है।
33. आकाश गंगा के केन्द्रिय भाग से सूर्य की दूरी 30,000 प्रकाश वर्ष है।
34. एक प्रकाश वर्ष का मान 94.6 खरब किलोमीटर होता है।
35. प्रकाश किरणों की गति 3,00,000 किलोमीटर प्रति सैकण्ड होती है।
36. आकाश गंगा सूर्य के साथ 135 मील प्रति सैकण्ड की दर से घूम रही है।
37. सूर्य को आकाश गंगा का एक चक्कर लगाने में लगभग 25करोड वर्ष लगते हैं।
38. सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी 9,29,57,209 मील है।
39. अन्य सभी ग्रहों की कक्षा गोलाकार है परन्तु पृथ्वी की कक्षा अण्डाकार है।
40. सूर्य से पृथ्वी की निकटतम दूरी 9,14,00,000 मील है तथा अधिकतम दूरी 9,46,00,000 मील है।
41. समस्त ग्रहों के भार को एक जगह रखें तो इस भार का लगभग हजार गुणा सूर्य का भार होता है।
42. सूर्य के केन्द्रिय भाग का तापमान लगभग 16,00,00,000 डिग्री सेन्टीगे्रड है।
43. सूर्य की आयु लगभग 6अरब वष्ाü है।
44. सूर्य से पृथ्वी पर डेढ़ हार्स पावर शक्ति (ऊर्जा) प्रति वर्ग गज प्राप्त होती है और सम्पूर्ण पृथ्वी सूर्य से 3,30,000 अरब हार्स पावर शक्ति प्रतिदिन प्राप्त करती है।
45. सूर्य की बाहरी परतों का तापमान लगभग 6111 डिग्री फोरेनहाइट है।
46. यदि वर्षा ऋतु में पे़ड पर बैठा गिरगिट और भूमि पर खडी गायें मुँह ऊँचा करके सूर्य को देंखे तो निश्चित ही शीघ्र वर्षा होती है।
47. जब सूर्य मण्डल मोर के कण्ठ जैसा दिखे और हवा न चलें तो तीन दिन में ही अच्छी वर्षा होती है।
48. जब समस्त ग्रह सूर्य से आगे या पीछे हो तो अच्छी वर्षा होती है।
49. सूर्य यदि बुध शुक्र के समीप हो तो वर्षा होती है लेकिन बुध व शुक्र के मध्य में हो तो वर्षा नहीं होती।
50. इन्द्र धनुष का केवल पश्चिम दिशा में दिखाई देना शुभ होता है।
51. जिस चान्द्र मास में सूर्य दो बार राशि परिवर्तन करे तो दूसरी संक्रान्ति वाला चंद्र मास क्षय हो जाता है और जिस चान्द्र मास में एक बार भी सूर्य राशि परिवर्तन नहीं करें वह मास अधिक मास हो जाता है जिसे पुरूषोत्तम मास कहते है।
52. सूर्य संक्रांति के समय कभी भी सूर्य को साष्टांग प्रणाम नहीं करना चाहिए। करने वाले को राजयक्ष्मा रोग होने का खतरा रहता है।
53. सूर्य जब धनु तथा मीन राशि में होते हैं तो, वह काल मलमास कहलाता है।
54. माघ महिना कभी भी न अधिक होता है और न क्षय।
55. जिस चान्द्र मास में सूर्य की संक्रान्ति नहीं हो वह भी मल मास कहलाता है।
56. सूर्य से चंद्र 12 अंश दूर हो तो एक तिथि पूरी हो जाती है तथा 12-12 अंश के अंतर पर एक-एक तिथि पूरी होती है।
57. सदा सूर्योदय से ही वार का प्रारम्भ माना जाता है।
58. सूर्य सकं्रान्ति होने पर जो स्त्रान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी, दु:खी और धनहीन होता है।
59. सूर्य जब शून्य अंश पर हो तो दान-पुण्य का अधिकाधिक फल मिलता है।
61. सूर्य संक्रान्ति काल में भूल कर भी तेल मर्दन, मैथुन, मांस भक्षण, दातुन, लकडी का संग्रह, काष्ठ निर्माण, भोजन, दूध दुहना तथा कठोर वचन कभी नहीं बोलना चाहिये।
62. सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के समय जो लगA होती है उसे जगत् लगA कहते हैं।
63. विश्वकर्मा (त्वष्ट्रा) ने सूर्य के तेज का हरण करके, उसी तेज से देवताओं के शस्त्रादि का निर्माण किया था।
64. शरद संपात् से बंसत संपात के मध्य दिनों में उषा काल में वेदाध्ययन करना चाहिये।
65. सूर्य की जटाएं : ग्रहण काल में सूर्य मण्डल के चारों ओर अगिA की लपटें दिखाई देती हैं। ये ही सूर्य की जटाएं हैं इनकी तह लगभग 1000 मील मोटी होती है।
66. पलटाऊ तह- प्रकाश मण्डल के कुछ ऊपर हीलियम गैस की परतें होती है यह पलटाऊ तह कहलाती है। इनमें पृथ्वी पर उपलब्ध कुछ तत्व होते हैं पर अति गर्मी से वे नित्य परिवर्तन होते रहते हैं।
67. सूर्य सदा मार्गी रहते हैं कभी वक्री नहीं होते।
68. सूर्य रश्मियों से स्त्रान हमेशा दोपहर से पूर्व ही किया जाता है।
69. भारतीय संवत् ब्राrाण, पितृ, पै˜य, प्रजापति, गौर्व, सौर, सावन, चंद्र और नक्षत्र मास पर आधारित है तथा नौ काल मान निर्णायक पद्घतियों द्वारा निश्चित होता है।
70. जिस नक्षत्र में सूर्य ग्रहण हो, उस नक्षत्र में अगले 6 मास तक कोई शुभ मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।
71. सूर्य व बृहस्पति परस्पर एक दूसरे की राशियों में हो तो गुर्वादित्य दोष होता है।
2. सभी खगोलीय गणनाएं 499 ए.डी. के आधार पर की जाती हैं।
3. भारतीय खगोलीय गणनाऎं भू-केन्द्रिक हैं जबकि पाश्चात्य गणनाएं सूर्य केन्द्रिक हैं।
4. भारतीय मत से नक्षत्र मंडल में दूरियों की गणना मेषारम्भ (अश्विनी नक्षत्र) बिन्दु को स्थिर मानकर की जाती है। जबकि पाश्चात्य मत में मेषारम्भ बिन्दु को चलायमान मानते हैं। पाश्चात्य मत में बसन्त संपात के समय सूर्य जिस नक्षत्र पर हो वही मेषारम्भ बिन्दु होता है।
5. हमारी भारतीय गणनाओं में चित्रापक्षीय अयनांश मान्य है।
6. निरयन् और सायन में अयनांश मुख्य अंतर होता है। अर्थात सायन भोगांश-अयनांश= निरयन भोगांश ।
7. अयनांश लगभग 72 वष् में एक अंश तथा एक वर्ष में 50 विकला 3 सूक्ष्म कला चाप पीछे खिसकता है।
8. पृथ्वी के अक्ष और क्रान्तिवृत्त के मध्य 23 अंश का कोण होता है।
9. भारतीय मत में समय (दिन की) गणना सूर्योदय से सूर्योदय के आधार पर की जाती है जबकि पाश्चात्य मत में दिन गणना पृथ्वी के धूर्णन (अपनी अक्ष पर धूर्णन से) की जाती है।
10. भारतीय गणनाओं में स्थानीय समय का महत्व है और पाश्चात्य गणनाओं में मानक समय की महत्ता है।
11. भारतीय शास्त्रों में खगोल शास्त्र और ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है, एक शरीर है तो एक आत्मा है।
12. पृथ्वी गोल है, पृथ्वी से द्रष्ट, पृथ्वी के सापेक्ष आकाश भी गोल है।
13. पृथ्वी से द्रष्ट आकाश का दृश्य भाग ही निहारिका अर्थात् आकाश गंगा है।
14. पृथ्वी को भूमध्य रेखा दो भा
गों उत्तर व दक्षिण में विभाजित करती है। इस रेखा से बना वृत्त वृहत वृत कहलाता है।
15. विषवत् रेखा आकाश को पृथ्वी की ही भांति उत्तर व दक्षिण दो भागों में विभाजित करती है। आकाश में इस रेखा से बना काल्पनिक वृत्त विषवत् या ऩाडी वृत्त कहलाता है।
16. आकाशीय गोल में सूर्य जिस पथ पर गमन करते दिखाई देते हैं वह पथ क्रान्ति पथ या क्रान्ति वृत्त कहलाता है।
17. ऩाडी वृक्ष या वृहत्त् वृत्त से क्रान्ति वृत्त 23 अंश 27 कला का कोण बनाता है।
18. वास्तव में क्रान्ति वृत्त सूर्य के भ्रमण से नहीं अपितु सूर्य के सापेक्ष पृथ्वी के भ्रमण से बनता है।
19. पृथ्वी अपनी अक्ष पर 23 दिन की 17 कला झुकी हुई है।
20. क्रान्ति वृत्त को मध्य मानकर 9 अंश उत्तर व 9 अंश दक्षिण तक विस्तृत भाग भचक्र कहलाता है। इसे ही नक्षत्र मण्डल कहते है जिसमें सूर्यादि ग्रह नक्षत्र भ्रमण करते है। यह 9 का मान ही उत्तर या दक्षिण शर कहलाते हैं।
21. सूर्यादि ग्रहों के भोगांश (राशि विशेष में स्थिति) मेष के प्रारम्भ बिन्दु से निश्चित होता है।
22. वसंत संपात अर्थात उत्तर गोल में प्रवेश वाले दिन (21 मार्च) तथा दक्षिण गोल में प्रवेश वाले दिन (23 सितम्बर) को सूर्य क्रान्ति शून्य होती है।
23. ग्रीष्म संपात या दक्षिणायन वाले दिन (21 जून) सूर्य की उत्तरा क्रान्ति अधिकतम होती है तथा उत्तरायण वाले दिन (22 दिसम्बर) सूर्य की दक्षिणा क्रान्ति अधिकतम होती है।
24. 21 मार्च और 23 सितम्बर को दिनमान व रात्रिमान समान होते हैं।
25. कोई भी आकाशीय पिण्ड पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर तब होता है जब वह याम्योत्तर वृत्त पर होता है।
26. भूमध्य रेखा से दोनो धु्रवों के एक साथ दर्शन होते हैं।
27. ग्रहों का कक्षा क्रम पृथ्वी केन्द्रिक व्यवस्था में उत्तरोत्तर क्रमश: पृथ्वी, सिद्घ, विद्याद्यर, घन बादल-चंद्र बुध- शुक्र-सूर्य-मंगल-गुरू-एवं शनि-यूरेनस -नेप्च्युन-प्लूटो।
28. कक्षा क्रम सूर्य केन्द्रिक व्यवस्था में क्रमश: सूर्य-बुध-शुक्र-पृथ्वी- चंद्र - मंगल-गुरू-शनि-यूरेनस-नेपच्यून-प्लूटो।
29. सूर्य का व्यास 8,65,000 मील है। यह पृथ्वी से लगभग 110 गुना अधिक बडा है।
30. सूर्य का आयतन पृथ्वी के आयतन से 13,00,000 गुणा अधिक है।
31. सूर्य का द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान से 3,30,000 गुणा अधिक है।
32. सूर्य की पिण्डात्मक ऊर्जा हाइड्रोजन के हीलियम में परिवर्तन से बनती है।
33. आकाश गंगा के केन्द्रिय भाग से सूर्य की दूरी 30,000 प्रकाश वर्ष है।
34. एक प्रकाश वर्ष का मान 94.6 खरब किलोमीटर होता है।
35. प्रकाश किरणों की गति 3,00,000 किलोमीटर प्रति सैकण्ड होती है।
36. आकाश गंगा सूर्य के साथ 135 मील प्रति सैकण्ड की दर से घूम रही है।
37. सूर्य को आकाश गंगा का एक चक्कर लगाने में लगभग 25करोड वर्ष लगते हैं।
38. सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी 9,29,57,209 मील है।
39. अन्य सभी ग्रहों की कक्षा गोलाकार है परन्तु पृथ्वी की कक्षा अण्डाकार है।
40. सूर्य से पृथ्वी की निकटतम दूरी 9,14,00,000 मील है तथा अधिकतम दूरी 9,46,00,000 मील है।
41. समस्त ग्रहों के भार को एक जगह रखें तो इस भार का लगभग हजार गुणा सूर्य का भार होता है।
42. सूर्य के केन्द्रिय भाग का तापमान लगभग 16,00,00,000 डिग्री सेन्टीगे्रड है।
43. सूर्य की आयु लगभग 6अरब वष्ाü है।
44. सूर्य से पृथ्वी पर डेढ़ हार्स पावर शक्ति (ऊर्जा) प्रति वर्ग गज प्राप्त होती है और सम्पूर्ण पृथ्वी सूर्य से 3,30,000 अरब हार्स पावर शक्ति प्रतिदिन प्राप्त करती है।
45. सूर्य की बाहरी परतों का तापमान लगभग 6111 डिग्री फोरेनहाइट है।
46. यदि वर्षा ऋतु में पे़ड पर बैठा गिरगिट और भूमि पर खडी गायें मुँह ऊँचा करके सूर्य को देंखे तो निश्चित ही शीघ्र वर्षा होती है।
47. जब सूर्य मण्डल मोर के कण्ठ जैसा दिखे और हवा न चलें तो तीन दिन में ही अच्छी वर्षा होती है।
48. जब समस्त ग्रह सूर्य से आगे या पीछे हो तो अच्छी वर्षा होती है।
49. सूर्य यदि बुध शुक्र के समीप हो तो वर्षा होती है लेकिन बुध व शुक्र के मध्य में हो तो वर्षा नहीं होती।
50. इन्द्र धनुष का केवल पश्चिम दिशा में दिखाई देना शुभ होता है।
51. जिस चान्द्र मास में सूर्य दो बार राशि परिवर्तन करे तो दूसरी संक्रान्ति वाला चंद्र मास क्षय हो जाता है और जिस चान्द्र मास में एक बार भी सूर्य राशि परिवर्तन नहीं करें वह मास अधिक मास हो जाता है जिसे पुरूषोत्तम मास कहते है।
52. सूर्य संक्रांति के समय कभी भी सूर्य को साष्टांग प्रणाम नहीं करना चाहिए। करने वाले को राजयक्ष्मा रोग होने का खतरा रहता है।
53. सूर्य जब धनु तथा मीन राशि में होते हैं तो, वह काल मलमास कहलाता है।
54. माघ महिना कभी भी न अधिक होता है और न क्षय।
55. जिस चान्द्र मास में सूर्य की संक्रान्ति नहीं हो वह भी मल मास कहलाता है।
56. सूर्य से चंद्र 12 अंश दूर हो तो एक तिथि पूरी हो जाती है तथा 12-12 अंश के अंतर पर एक-एक तिथि पूरी होती है।
57. सदा सूर्योदय से ही वार का प्रारम्भ माना जाता है।
58. सूर्य सकं्रान्ति होने पर जो स्त्रान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी, दु:खी और धनहीन होता है।
59. सूर्य जब शून्य अंश पर हो तो दान-पुण्य का अधिकाधिक फल मिलता है।
61. सूर्य संक्रान्ति काल में भूल कर भी तेल मर्दन, मैथुन, मांस भक्षण, दातुन, लकडी का संग्रह, काष्ठ निर्माण, भोजन, दूध दुहना तथा कठोर वचन कभी नहीं बोलना चाहिये।
62. सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के समय जो लगA होती है उसे जगत् लगA कहते हैं।
63. विश्वकर्मा (त्वष्ट्रा) ने सूर्य के तेज का हरण करके, उसी तेज से देवताओं के शस्त्रादि का निर्माण किया था।
64. शरद संपात् से बंसत संपात के मध्य दिनों में उषा काल में वेदाध्ययन करना चाहिये।
65. सूर्य की जटाएं : ग्रहण काल में सूर्य मण्डल के चारों ओर अगिA की लपटें दिखाई देती हैं। ये ही सूर्य की जटाएं हैं इनकी तह लगभग 1000 मील मोटी होती है।
66. पलटाऊ तह- प्रकाश मण्डल के कुछ ऊपर हीलियम गैस की परतें होती है यह पलटाऊ तह कहलाती है। इनमें पृथ्वी पर उपलब्ध कुछ तत्व होते हैं पर अति गर्मी से वे नित्य परिवर्तन होते रहते हैं।
67. सूर्य सदा मार्गी रहते हैं कभी वक्री नहीं होते।
68. सूर्य रश्मियों से स्त्रान हमेशा दोपहर से पूर्व ही किया जाता है।
69. भारतीय संवत् ब्राrाण, पितृ, पै˜य, प्रजापति, गौर्व, सौर, सावन, चंद्र और नक्षत्र मास पर आधारित है तथा नौ काल मान निर्णायक पद्घतियों द्वारा निश्चित होता है।
70. जिस नक्षत्र में सूर्य ग्रहण हो, उस नक्षत्र में अगले 6 मास तक कोई शुभ मांगलिक कार्य नहीं किया जाता।
71. सूर्य व बृहस्पति परस्पर एक दूसरे की राशियों में हो तो गुर्वादित्य दोष होता है।
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