मकर लग्न और व्यवसाय
इस लग्न की जन्मपत्रिका में आय भाव का स्वामी मंगल, धन भाव का स्वामी शनि (जो स्वयं लग्नेश होकर जातक या जातिका के शरीर एवं मानसिक स्थिति का द्योतक है) तथा कार्य भाव का स्वामी शुक्र है। चूँकि लग्नेश, धनेश और कार्येश तीनो ही परम मित्र है परन्तु आयेश मंगल की धनेश और कार्येश से परम शत्रुता है। अतः जातक को व्यवसाय और धन प्राप्ति के लिए सदैव संघर्ष करना पड़ता है। फलित ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार एकादशेश/आयेश /लाभेश सदैव शुभ फल प्रदाता होता है, अतः यदि जातक शुक्र या शनि से सम्बंधित व्यवसाय करे तो अच्छा धन, मान, यश और ख्याति प्राप्त हो सकती है। आयेश, धनेश अर्थात मंगल, शनि की शत्रुता से लाभ दायक सिद्धांत यह माना जा सकता है कि किन्ही दो व्यक्तियों के झगड़े से लाभ उठा कर सहजता से धन एवं ख्याति तथा रोजगार पाया जा सकता है। उपरोक्त के अलावा -
- यदि शनि लग्न भाव, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम या एकादश भाव में हो तो जातक वकील व् गुरु का प्रभाव भी हो तो जज, सलाहकार या कानूनी पंडित, लौह पदार्थों का डीलर, ठेकेदारी, दलाली, कोर्ट-कचेहरी के कर्मचारी, पुलिस विभाग के अन्य सहायक विभाग यथा ट्रैफिक, आर. टी. ओ., जेलर या जेल कर्मचारी, गुप्तचर विभाग आदि से सम्बंधित व्यवसाय या नौकरी होती है।
- यदि लग्न भाव, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम या एकादश भाव में शुक्र और शनि की युति या दृष्टि प्रभाव हो या दोनों ग्रह केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक लौह इस्पात, कारखाना या इससे सम्बंधित अन्य व्यवसाय, भैस पालन, उन्नत किस्म के कृषि कार्य, राजनीति, छल-कपट के कार्य यथा चोरी, जुआ, सट्टा, दलाल, राजनैतिक षड्यंत्र कारक, कठोर एवं निरंकुश कर्म वाले व्यवसाय से लाभ प्राप्त करके अपना जीवन यापन कर सकता है।
- यदि दशम भाव या दशमेश पर सूर्य, मंगल, गुरु का प्रभाव हो तो जातक राजकीय नौकरी करता है जो कि जोखिमपूर्ण और कष्टकारक ही होती है।
- यदि दशम भाव या दशमेश पर बुध या चन्द्र का प्रभाव हो तो विद्युत सामग्री या संचार माध्यम से सम्बंधित व्यवसाय से लाभ प्राप्त करता है।
- इस लग्न में जातक का जन्म होने पर जातक को यह मान लेना चाहिए कि किसी पूर्व जन्म के कर्म के दुष्फल भोगने के निमित्त ही उसका जनक हुआ है, जिसके परिणाम सवरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष अनिवार्य करना पड़ता है। अर्थात जातक जितना संघर्ष करेगा, उतना ही सफल होगा। अस्तु
इस लग्न की जन्मपत्रिका में आय भाव का स्वामी मंगल, धन भाव का स्वामी शनि (जो स्वयं लग्नेश होकर जातक या जातिका के शरीर एवं मानसिक स्थिति का द्योतक है) तथा कार्य भाव का स्वामी शुक्र है। चूँकि लग्नेश, धनेश और कार्येश तीनो ही परम मित्र है परन्तु आयेश मंगल की धनेश और कार्येश से परम शत्रुता है। अतः जातक को व्यवसाय और धन प्राप्ति के लिए सदैव संघर्ष करना पड़ता है। फलित ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार एकादशेश/आयेश /लाभेश सदैव शुभ फल प्रदाता होता है, अतः यदि जातक शुक्र या शनि से सम्बंधित व्यवसाय करे तो अच्छा धन, मान, यश और ख्याति प्राप्त हो सकती है। आयेश, धनेश अर्थात मंगल, शनि की शत्रुता से लाभ दायक सिद्धांत यह माना जा सकता है कि किन्ही दो व्यक्तियों के झगड़े से लाभ उठा कर सहजता से धन एवं ख्याति तथा रोजगार पाया जा सकता है। उपरोक्त के अलावा -
- यदि शनि लग्न भाव, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम या एकादश भाव में हो तो जातक वकील व् गुरु का प्रभाव भी हो तो जज, सलाहकार या कानूनी पंडित, लौह पदार्थों का डीलर, ठेकेदारी, दलाली, कोर्ट-कचेहरी के कर्मचारी, पुलिस विभाग के अन्य सहायक विभाग यथा ट्रैफिक, आर. टी. ओ., जेलर या जेल कर्मचारी, गुप्तचर विभाग आदि से सम्बंधित व्यवसाय या नौकरी होती है।
- यदि लग्न भाव, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, दशम या एकादश भाव में शुक्र और शनि की युति या दृष्टि प्रभाव हो या दोनों ग्रह केंद्र त्रिकोण में हो तो जातक लौह इस्पात, कारखाना या इससे सम्बंधित अन्य व्यवसाय, भैस पालन, उन्नत किस्म के कृषि कार्य, राजनीति, छल-कपट के कार्य यथा चोरी, जुआ, सट्टा, दलाल, राजनैतिक षड्यंत्र कारक, कठोर एवं निरंकुश कर्म वाले व्यवसाय से लाभ प्राप्त करके अपना जीवन यापन कर सकता है।
- यदि दशम भाव या दशमेश पर सूर्य, मंगल, गुरु का प्रभाव हो तो जातक राजकीय नौकरी करता है जो कि जोखिमपूर्ण और कष्टकारक ही होती है।
- यदि दशम भाव या दशमेश पर बुध या चन्द्र का प्रभाव हो तो विद्युत सामग्री या संचार माध्यम से सम्बंधित व्यवसाय से लाभ प्राप्त करता है।
- इस लग्न में जातक का जन्म होने पर जातक को यह मान लेना चाहिए कि किसी पूर्व जन्म के कर्म के दुष्फल भोगने के निमित्त ही उसका जनक हुआ है, जिसके परिणाम सवरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संघर्ष अनिवार्य करना पड़ता है। अर्थात जातक जितना संघर्ष करेगा, उतना ही सफल होगा। अस्तु
बहुत ही उत्तम लेख है और उससे भी अच्छा विश्लेषण यह लगा कि मकर लग्न या राशि वालों को पूर्व जन्म के कर्म के कारण ही मकर राशि मिली शायद पूर्व जन्म में दूसरों की कमाई गई दौलत पर ऐश्वर्य भोग किया होगा तभी इस जन्म में ज़्यादा मेहनत करनी पड़ रही है
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