रुद्राक्ष
की महिमा
रूद्राक्ष
के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक धारियां खिंची होती हैं। इन्हें मुख कहा जाता
है। इन्हीं धारियों के आधार पर एकमुखी से सत्ताईस मुखी तक रूद्राक्ष फलते हैं, जिनका
अलग-अलग महत्व व उपयोगिता है।
जिस
रूद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है, चाहे वह किसी भी मुख का हो,
अपने गुण-धर्म के आधार पर श्रेष्ठ होता है। रुद्राक्ष धारण करने से
कभी किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है अत: हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में
रूद्राक्ष का स्थान रत्नों से भी उच्च है।
इस दिन पहनें रुद्राक्ष
रूद्राक्ष
को हमेशा सोमवार, सोमप्रदोष के दिन, शिवरात्रि या गुरुपुष्य योग के दिन प्रात:काल
शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर, मंत्रो
द्वारा अभिमंत्रित करवाकर, लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर, अभिजित
मुहूर्त में धारण किया जा सकता है।
तीन तरह के विशेष रुद्राक्ष :-
गौरी शंकर रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष प्राकृतिक रुप
से जुडा़ होता है शिव व शक्ति का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को
सर्वसिद्धिदायक एवं मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। गौरी शंकर रुद्राक्ष
दांपत्य जीवन में सुख एवं शांति लाता है। इस रुद्राक्ष को धारण करने से विवाह में
विलम्ब, रिश्ता होकर टूट जाना, वैवाहिक जीवन में कलेश, संतान का न होना या होकर मर
जाना आदि बहुत सी समस्याओ का निश्चित ही समाधान हो जाता है। यह रुद्राक्ष जितने
अधिक मुखी हो उतना ही उत्तम होता है।
गणेश रुद्राक्ष : इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश
जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है।
यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह
रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है। जिस जातक की पत्रिका में बुध ग्रह अस्त होकर या नीच का
होकर विराजित हो उन्हें ये अवश्य धारण करना चाहिये। यदि किसी जातक को व्यापार में
समस्याए आती हो, हानि होती हो या बहन-बेटी-बुआ आदि से रिश्तो में कड़वाहट आ गई हो
तो उन्हें भी ये रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिये।
गौरीपाठ रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का
स्वरूप है। इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा
प्राप्त होती है। यह रुद्राक्ष काफी दुर्लभ होता है। इसे त्रिशक्ति रुद्राक्ष, त्रिबली रुद्राक्ष, त्रिजटी रुद्राक्ष भी कहते है।
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